भारत में मीडिया का बदलता रुख

          " भारत में  मीडिया का बदलता रुख"



नमस्कार दोस्तों मैं आपका दोस्त धर्मेन्द्र (गुमनाम मुसाफिर) आपके साथ आज के अहम मुद्दे के साथ आज का मुद्दा है, भारत में मीडिया का बदलता रुख ।

मैं आपका ध्यान उस ओर आकर्षित करना चाहता हूं जिस और भारत 40 % से 50% जनमानस नहीं समझ पाता है मीडिया को समझने के के लिए हमे मीडिया के इतिहास मे जाना होगा

भारतीय मीडिया का इतिहास

भारत में मीडिया का विकास तीन चरणों में माना जाता है, पहले दौर की शुरुआत 19  वी  सदी में पड़ी  थी अंतर्विरोधी  छाया के कारण मीडिया  दो वर्गों में बट  गया।
                एक भाग औपनिवेशिक शासन का समर्थन करने लगा, और दूसरा भाग स्वतंत्रता का झण्डा खड़े करने बालों के साथ खड़ा हो गया यह दौर 1947 ई. वी तक चलता रहा।
इसी बीच अंग्रेजी भाषा के साथ साथ भारतीय भाषाओं में पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशन की समृध्द परंपरा पड़ी और अंग्रेजो के नियंत्रण में रेडियो प्रसारण की शुरुआत हुई।
अब दूसरा दौर आजादी मिलने के साथ प्रारम्भ हो गया, और लगभग 80 के दशक तक चला। इस लंबी अवधि में मीडिया की गुणवत्ता में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई इसी दौर में T. V. का आगमन हुआ, मुद्रित मीडिया मुख्यतः निजी क्षेत्र के हाथों में और रेडियो और टीवी की लगाम सरकार के हाथ में रही।
नब्बे के दशक में भूमंडलीकरण के आगमन के साथ तीसरा दौर प्रारम्भ हो गया था, जो आज तक जारी है।

बदलता रुख-

यह राष्ट्र निर्माण और ज़न- राजनीति के प्रचलित मुहावरे में हुए अमूल चूल परिवर्तन का समय था, जिसके कारण मीडिया की शक्ल सूरत और रुझानों में भारी तब्दीलियां आई टीवी और रेडियो पर सरकारी जकड़ ढीली होने लगी 24 घंटे चलने वाले उपग्रहीय टीवी चैनल और FM रेडियो चैनल का तेजी से प्रसार हुआ।

                अब टीवी चैनलों और रेडियो चैनलों के मालिकों की नीयत गड़बड़ाने लगी, अब मीडिया में भी एक व्यापार की दौड़ प्रारम्भ हो गई इस दौड़ में मीडिया भूलती जा रहीं है कि वह देश का चौथा स्तंभ है। रैंकिंग और TRP की दौड़ में मीडिया ने अपने आप को राजनैतिक सत्ताधारियों के यहां गिरवी रख दिया है, राजनीतिक सत्ता के लिए राजनेता और रैंकिंग के लिए मीडिया ने देश को जलाने के लिए अनगिनत प्रयास किए, अभी भी बखूबी निभा रहे है।
        मेरा व्यक्तिगत मानना है कि आज की मीडिया यदि आजादी से पहले होती तो तो देश सायद अभी तक आजाद ना हो पाता, आए दिन टीबी एंकर डिबेट के नाम पर साम्प्रदायिकता का जहर घोल रहे हैं आज के समाज में जिससे सामजिक दूरियां बड़ी तेजी से बड़ रहीं हैं एक सम्प्रदाय का व्यक्ति दूसरे सम्प्रदाय के व्यक्ति को ईर्ष्या की नजरों से देखता है, सामजिक भाईचारे का गला घोंटने का कार्य राजनेताओ ने तो किया ही है लेकिन मीडिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़ा, हाल ही में हुए दिल्ली दंगे में मीडिया का अहम किरदार रहा और विगत बर्षों में जो भी सामाजिक घटना होती है उसमे भी मीडिया का किरदार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से होता ही है
        आज की मीडिया जमीनी मुद्दों से भटककर कुछ अलग ही मुद्दों की ओर ध्यान दे रहीं है जिससे समाज को अराजकता की अलावा कुछ नहीं मिलेगा और इसमे हानि सिर्फ आम जनमानस की ही होती है, क्योंकि वो बहकावे में जल्द ही आ जाता है बिना सोच विचार के सङकों पर उतर जाता है और इसमे नुकसान आम जनमानस का और भारतीय संपत्ति का ही होता है, जो मीडिया के बारे में एक बात कही जाती थी कि "मीडिया का रूप निष्पक्ष होता है" अब इसके विपरित है कोई राइट्स मीडिया का पक्ष रखता है कोई लेफ्ट मीडिया का।
    सरकार को कुछ कानून बनाने चाहिए जिससे मीडिया पर साम्प्रदायिक मुद्दो के अलावा, गरीबी, शिक्षा, भुखमरी,बेरोजगारी, देश की व्यवस्था पर डिबेट करे। जिससे हमारा देश पुनः विश्वगुरु की ओर अग्रसर होगा और साम्प्रदायिक दंगों से देश को छूट मिल जाएगी।

व्यक्तिगत विचार - 

सरकार और मीडिया अपनी जगह ठीक है, हमारी समाज को अपने वैचारिक सोच बदलनी होंगी समाज में आप सब को साथ रहना है आप चंद्र नेताओ और मीडिया की बातों से अपने आपसी भाइचारे को दाव पर मत लगाव, वो तुम्हें तोड़ेंगे तुम अड़े रहना इसमे ही देश और आपकी जीत साबित होगी
आप अपनी 



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