भारत में प्राथमिक शिक्षा का स्तर 🖋️
भारत में प्राथमिक शिक्षा का स्तर
नमस्कार मित्रों, मैं धर्मेन्द्र (गुमनाम मुसाफिर) आपके साथ आप सब ने पिछले ब्लॉग में मुझे असीम प्यार दिया, बस ऐसे ही साथ बने रहे मैं समाज मे फैले कुकृत्य कार्यो को उजागर करके एक नये समाज के निर्माण की ओर अग्रसर करने का एक छोटा सा प्रयास, आज का मुद्दा है प्राथमिक शिक्षा का स्तर कितना गिरता जा रहा है
प्राथमिक शिक्षा का अर्थ है , "वह शिक्षा जो बाल अवस्था की 6 वर्ष से 14 वर्ष के विद्यार्थियों को दी जाती है"
भारतीय संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखा गया है। शिक्षा का अधिकार संविधान (छियासीवां संशोधन) अधिनियम, 2002 ने भारत के संविधान में अंत: स्थापित अनुच्छेद 21-क, ऐसे ढंग से जैसाकि राज्य कानून द्वारा निर्धारित करता है, मौलिक अधिकार के रूप में छह से चौदह वर्ष के आयु समूह में सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया ।
संविधानिक तरीके से सरकार ने शिक्षा की व्यवस्था तो कर दी, प्रश्न ये उठता है क्या ये शिक्षा सही ढंग से उन तक पहुच पा रही है जिसे इसकी जरूरत है, सरकारी प्राथमिक शिक्षा की स्थिति दिन प्रतिदिन भया- भय होती जा रही है इसके मुख्य तीन कारण है -
1.पहला कारण सरकारे शिक्षा को उतनी सजग नहीं है जितना उन्हें होना चाहिए
2.दूसरा मुख्य कारण प्राइवेट विद्यालयों का बहुत अधिक मात्रा में खुलना जब जिस जगह सरकारी विद्यालय पहले से है तो उस जगह प्राइवेट विद्यालयों की इजाजत कैसे मिल जाती है।
3. तीसरा मुख्य कारण हमारे अध्यापको की लापरवाही इतनी भया भय है कि माँ बाप विद्यालय भेजने से सही उनको घर पर बैठने की सलाह देते है।
मैं ये नहीं कहता कि ऐसे सभी अध्यापक होते है लेकिन औसतन 100 मे से 60 से 70 ऐसे ही होते है वो जानते है भारत में शिक्षा के अलावा और दूसरे मुद्दे है सरकार के लिए और अध्यापक इसमे अपनी मनमानी करते है, आप समय पर अध्यापकों की वीडियों देखते रहते होंगे इन्टरनेट पर।
आज की स्थिति ये है की किसी स्कूल में एक अध्यापक ही और स्कूल निरन्तर चल रहा है, वहीं दूसरी ओर किसी स्कूल में अध्यापक है तो विद्यार्थि नहीं है, जब स्थिति इतनी भया भय है तो क्यों सरकार अपना धन इस प्रकार बर्बाद कर रही है
उत्तर प्रदेश सरकार के एक आंकड़े के अनुसार उत्तर प्रदेश में 1लाख 40 हजार प्राथमिक व अपर प्राथमिक विद्यालय हैं तथा कागज पर 1.75 करोड़ विद्यार्थी हैं अर्थात औसतन एक विद्यालय में 125 बच्चे होने चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं है।
कागज पर यह भी दर्शाया जाता है कि उत्तर प्रदेश के इन विद्यालयों में 3.79 लाख अध्यापक हैं तथा 2.07 लाख अध्यापकों की और जरूरत है। शायद सच्चाई इससे इतर है। किसी-किसी स्कूल में तो 10-15 बच्चे हैं और 04-05 अध्यापक हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में अध्यापकों की भारी किल्लत है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में कोई अध्यापक जाना नहीं चाहता। जहां बच्चे हैं वहां अध्यापक नहीं हैं और जहां अध्यापक हैं वहां बच्चे नहीं हैं! प्राथमिक शिक्षा की गिरती साख का ही परिणाम है कि शिक्षा का निजीकरण हो रहा है। इसका परिणाम है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जो असहाय एवं वंचित-गरीब वर्ग है वह इससे बेदखल होने को मजबूर है और यह अमीर और गरीब के मध्य की विभाजक रेखा बन गई है।
हालात तो यहां तक खराब हैं कि 2978 विद्यालयों में पेयजल की सुविधा ही नहीं पायी गयी और 1734 ऐसे विद्यालय पाये गये जिनमें बालक और बालिकाओं के लिए एक ही शौचालय था। दिव्यांग बच्चों को दी जाने वाली सुविधाओं में भी घालमेल साफ नजर आता है। रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2010 से 2016 के बीच में विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के रुप में नामांकित 18.76 लाख छात्र/छात्राओं में से मात्र 2.09 लाख बच्चों के पास विकलांगता प्रमाणपत्र था। फिर भी सभी बच्चों को अर्ह मानते हुए 287.88 करोड़ रुपये खर्च कर दिये गए।
मिड डे मील के घोटाले निरन्तर है -
खास बात यह है कि लंबे समय से हो रहे इन घोटालों में विभागीय अधिकारी अधिकतर चुप्पी साध लेते है ब कभी कबार मामले उजागर हो जाते हैं तो इस बार 9 विद्यालयों में घोटाले हुए
7,79,222 रुपये का है इन 9 स्कूलों में घोटालादोहा गांव के राजकीय प्राथमिक पाठशाला में जनवरी 2015 से सितंबर 2016 तक रिकॉर्ड नहीं दिखाया गया। दोहा गांव के राजकीय मिडिल स्कूल में मिड डे मील में 9377 रुपये की अधिक राशि खर्च की हुई है। दोहना गांव के राजकीय कन्या मिडिल स्कूल में मिड डे मील में 65,989 रुपये की अधिक राशि खर्च की गई और सितंबर 2019 व अक्तूबर 2019 की कैशबुक पूरी नहीं की है। सक्काबास गांव के राजकीय प्राथमिक पाठशाला में मिड डे मील में 25,735 रुपये की अधिक राशि खर्च की हुई। रावली गांव के राजकीय प्राथमिक पाठशाला में मिड डे मील में 2, 69,988 रुपये अधिक खर्च की हुई है। रावली गांव के राजकीय कन्या प्राथमिक पाठशाला में मिड डे मील में 1,67,858 रुपये की अधिक राशि खर्च की हुई है और अक्तूबर 2019 की कैशबुक पूरी नहीं है। रावली गांव के राजकीय कन्या मिडिल स्कूल में मिड डे मील में 1,54,732 रुपये की अधिक राशि खर्च की हुई है। मोहम्मद बास गांव के राजकीय प्राथमिक पाठशाला में मिड डे मील में 36,869 रुपये की अधिक राशि खर्च की हुई है और अक्तूबर 2019 की कैशबुक पूरी नहीं है। वहीं मोहम्मद बास गांव के राजकीय मिडिल स्कूल में मिड डे मील में 48,874 रुपये की अधिक राशि खर्च की हुई है और अक्तूूबर 2019 की कैशबुक पूरी नहीं है।
फिरोजपुर झिरका खंड के इन स्कूलों में जांच के दौरान मिड डे मील में लाखों का घोटाला करने का मामले सामने आएहैं।
अफसर और नेता तो बच्चों की ड्रेस को तक नहीं बख्शते -
इसमे आकड़ों की आवश्यकता नहीं है आप सब भलिं भाँति परिचित हो गए होंगे सरकार और अफसरों के घोटालों से जब सब आपको लेना ही है तो देने का भी उपकार क्यों करते हो, मानता हू इसके लिए एक सरकार जिम्मेदार नहीं है, लेकिन जो नहीं है वो तो कुछ करे।
ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ कर नहीं सकती बस करना नहीं चाहती, स्थिति इतनी गंभीर है कि सरकार और अफसरों को ध्यान देने की बहुत ही अतिआवश्यक है, इस स्थिति में एक एक तबका भविष्य के उजाले की ओर अग्रसर हो रहा है, और एक तबके का भविष्य अंधकार की ओर।
समझ तो ये नहीं आता कि शिक्षा के लिए इतने बड़े बड़े बजट पास होते है इनको कहा खर्च कर दिया जाता है कि जो स्थिति पहले होती है बही स्थिति बाद में, जितना नगरीय इलाक़ा शिक्षा के पास है उतना ही ग्रामीण इलाक़ा होना चाहिए, इसे आप विकास की श्रेणी में नहीं रख सकते कि जितना जरूरी शिक्षा का विकास नगरीय इलाको मे जरूरी है उससे अधिक ग्रामीण इलाके में आवश्यक है
🖋️ नमस्कार दोस्तो विदा लेता हूँ मिलते है नये मुद्दे के साथ एक नये ब्लॉग में आशा करता हू आप सब अच्छे होंगे 🙏
🖋️ नमस्कार दोस्तो विदा लेता हूँ मिलते है नये मुद्दे के साथ एक नये ब्लॉग में आशा करता हू आप सब अच्छे होंगे 🙏
🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteNyc lines
Delete🙏🚩🇮🇳
ReplyDeleteBhaut badiya
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