भोपाल गैस कांड जैसे आखिर कितने गैस कांड भारत में
भोपाल गैस कांड जैसे आखिर कितने गैस कांड भारत में-

नमस्ते मित्रों मैं धर्मेन्द्र (गुमनाम मुसाफिर) आपके साथ एक नये और पुराने शीर्षक को लेकर आज का शीर्षक बेहद दुःखद और सम्वेदनशील है आज का शीर्षक है भोपाल गैस कांड जैसे आखिर कितने गैस कांड भारत में....
भारतीय इतिहास की यह पहली औद्यौगिक त्रासदी थी, भारतीय इतिहास मैं ऐसी घटना पहले कभी नहीं हुई यह घटना अति चिंतनीय थी इसमे मरने वालों को पता भी था कि उनका किस कारण दम घुट रहा है।
उस समय भारत जैसे विशाल देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी हुआ करते थे, और मध्य प्रदेश सूबे में भी उनकी ही सरकार थी उस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे।
सरकारी आकड़ों और न्यूज एजेंसीयों की रिपोर्ट से पता चलता है, की संयुक्त राज्य अमेरिका की यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी भारतीय व्यापार के साथ भारत में प्रवेश लेकर मध्य प्रदेश के नामी शहर भोपाल में सन 1969 को स्थापित होती है। यह कंपनी रसायन और बहुलक जैसे द्रव पदार्थ बनाती है जो कीडे मकड़ो को मारने के लिए जो दवा बनाई जाती है वह दवा यही कम्पनी बनाती थी। 14 बर्षों तक लगभग सब ठीक चलता रहा था, लेकिन फिर रुपयों की दौड़ में कंपनी अनुभवी लोगों को निकाल कर नए लोगों को रखने लगी क्योंकि नए लोगों को वेतन कम देनी पड़ती है जहाँ चार लोगों की जरूरत होती थी उस जगह दो ही कर्मचारी रहते थे। जो 14 सालो से सावधानी पूर्वक कार्य चल रहा था अब वह असावधानी के दौड़ने लगा, मुनाफे के चक्कर में पूरा शहर झोंक दिया।
2 दिसम्बर की रात खतम होते ही 3 दिसम्बर का प्रारम्भ हो गया था, समय 12:30 बजे से 1 बजे के बीच मनहूस रात्री का खेल प्रारंभ हो गया। प्लांट के टंकी से मिथाइल आइसोसाइनाइट जहरीली गैस बहने लगी और बह कर शहर की हवा में घुलने लगी, धीरे धीरे पूरे शहर में अपरा तफरी मच गई, लोगों का दम घुटने लगा साँस फूलने लगी, लोग अभी भी नहीं समझ पा रहे थे कि उनके साथ क्या हो रहा था, इसका भयानक असर रेलवे-स्टेशन, बजरिया, जयप्रकाश नगर, कैची चोला जैसे इलाको में अत्याधिक पड़ा। लोगों को कुछ नहीं सूझ रहा था बस वो शहर से दूर भाग रहे थे कोई हॉस्पिटल की भाग रहा था जिससे और तेजी से लोगों की साँस फूल रहीं थीं, जो लोग जहाँ तक भाग पा रहे थे भाग रहे थे, एनजीओ की कुछ रिपोर्ट में बताया गया है कि कंपनी के 4 से 5 km के दायरे में लाशें और कुछ बेहोश लोग पड़े हुए थे, इसका मुख्य असर रेल्वे स्टेशन पर इंतजार कर रहे लोगों, और ट्रेन से उतरते लोगों पर भी पड़ा। जो लोग अपने पास के हॉस्पिटल की ओर भाग रहे थे, उस समय हमीदिया हॉस्पिटल और जयप्रकाश मेडिकल कालेज ही उस क्षेत्र के पास मे था। हैरत की बात तो है कि डॉ भी ये नहीं समझ पा रहे थे हो क्या रहा है सभी को एक जैसे लक्षण दिखाई दे रहे थे लेकिन ये पता लगाने मे उस समय डॉ असमर्थ रहे, लोगों की संतुष्टि के लिए कोई ऐसी दवा दे दे रहे थे जिससे मरीज़ को कोई नुकसान ना हो, एक बजह यह मानी जाती है, अत्याधिक मौतों की। बताया जाता है कि जो लोग 3 minut से ज्यादा साँस लेने के बाद वो तुरंत बेहोश हो जा रहा था। सरकारी आकड़ों के अनुसार 3 से 3.5 हजार लोगों की मौत हुई लेकिन असल आकड़े कुछ और ही कहते है, न्यूज एजेंसीयों की माने तो लगभग उस रात 15 से 16 हजार मौतें हुईं, और अभी तक तकरीबन 35 से 36 हजार मौतें हो चुकी है उस घटना से और लगभग 5 लाख लोग अभी भी प्रभावित है उस त्रासदी से, मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार जो बच्चे कमजोर आधी अधूरी बनावट के पैदा होते है उसका करना बह त्रासदी ही है लगभग 35 बर्ष होने को है लेकिन असर आज भी है भोपाल में।
उस समय मौजूदा सरकार ने क्या किया -
उस समय भारत जैसे विशाल देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी हुआ करते थे, और मध्य प्रदेश सूबे में भी उनकी ही सरकार थी उस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे।
सरकारी आकड़ों और न्यूज एजेंसीयों की रिपोर्ट से पता चलता है, की संयुक्त राज्य अमेरिका की यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी भारतीय व्यापार के साथ भारत में प्रवेश लेकर मध्य प्रदेश के नामी शहर भोपाल में सन 1969 को स्थापित होती है। यह कंपनी रसायन और बहुलक जैसे द्रव पदार्थ बनाती है जो कीडे मकड़ो को मारने के लिए जो दवा बनाई जाती है वह दवा यही कम्पनी बनाती थी। 14 बर्षों तक लगभग सब ठीक चलता रहा था, लेकिन फिर रुपयों की दौड़ में कंपनी अनुभवी लोगों को निकाल कर नए लोगों को रखने लगी क्योंकि नए लोगों को वेतन कम देनी पड़ती है जहाँ चार लोगों की जरूरत होती थी उस जगह दो ही कर्मचारी रहते थे। जो 14 सालो से सावधानी पूर्वक कार्य चल रहा था अब वह असावधानी के दौड़ने लगा, मुनाफे के चक्कर में पूरा शहर झोंक दिया।
2 दिसम्बर की रात खतम होते ही 3 दिसम्बर का प्रारम्भ हो गया था, समय 12:30 बजे से 1 बजे के बीच मनहूस रात्री का खेल प्रारंभ हो गया। प्लांट के टंकी से मिथाइल आइसोसाइनाइट जहरीली गैस बहने लगी और बह कर शहर की हवा में घुलने लगी, धीरे धीरे पूरे शहर में अपरा तफरी मच गई, लोगों का दम घुटने लगा साँस फूलने लगी, लोग अभी भी नहीं समझ पा रहे थे कि उनके साथ क्या हो रहा था, इसका भयानक असर रेलवे-स्टेशन, बजरिया, जयप्रकाश नगर, कैची चोला जैसे इलाको में अत्याधिक पड़ा। लोगों को कुछ नहीं सूझ रहा था बस वो शहर से दूर भाग रहे थे कोई हॉस्पिटल की भाग रहा था जिससे और तेजी से लोगों की साँस फूल रहीं थीं, जो लोग जहाँ तक भाग पा रहे थे भाग रहे थे, एनजीओ की कुछ रिपोर्ट में बताया गया है कि कंपनी के 4 से 5 km के दायरे में लाशें और कुछ बेहोश लोग पड़े हुए थे, इसका मुख्य असर रेल्वे स्टेशन पर इंतजार कर रहे लोगों, और ट्रेन से उतरते लोगों पर भी पड़ा। जो लोग अपने पास के हॉस्पिटल की ओर भाग रहे थे, उस समय हमीदिया हॉस्पिटल और जयप्रकाश मेडिकल कालेज ही उस क्षेत्र के पास मे था। हैरत की बात तो है कि डॉ भी ये नहीं समझ पा रहे थे हो क्या रहा है सभी को एक जैसे लक्षण दिखाई दे रहे थे लेकिन ये पता लगाने मे उस समय डॉ असमर्थ रहे, लोगों की संतुष्टि के लिए कोई ऐसी दवा दे दे रहे थे जिससे मरीज़ को कोई नुकसान ना हो, एक बजह यह मानी जाती है, अत्याधिक मौतों की। बताया जाता है कि जो लोग 3 minut से ज्यादा साँस लेने के बाद वो तुरंत बेहोश हो जा रहा था। सरकारी आकड़ों के अनुसार 3 से 3.5 हजार लोगों की मौत हुई लेकिन असल आकड़े कुछ और ही कहते है, न्यूज एजेंसीयों की माने तो लगभग उस रात 15 से 16 हजार मौतें हुईं, और अभी तक तकरीबन 35 से 36 हजार मौतें हो चुकी है उस घटना से और लगभग 5 लाख लोग अभी भी प्रभावित है उस त्रासदी से, मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार जो बच्चे कमजोर आधी अधूरी बनावट के पैदा होते है उसका करना बह त्रासदी ही है लगभग 35 बर्ष होने को है लेकिन असर आज भी है भोपाल में।
उस समय मौजूदा सरकार ने क्या किया -
भोपाल त्रासदी के समय यूनियन कार्बाइड कंपनी के मालिक वॉरेन एंडरसन भोपाल में ही उपस्थित थे, जनता के दबाव के कारण प्रशासन ने एंडरसन को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन अमेरीका के दबाब के चलते उस समय की राजीव गांधी सरकार उचित कार्यवाही ना कर सकी, गिरफ्तारी के चार दिन बात बेल पर एंडरसन को रिहा कर दिया गया और राजीव गांधी ने तुरंत उसे अमेरीका भेज दिया, इसी कारण कांग्रेस सरकार कि यह बहुत बड़ी गलती साबित हुई थी। ना सरकार ने कुछ खास मदद कि ना कंपनी ने, आकड़ों के अनुसार 1998 मे कंपनी ने लगभग 650 करोड़ रुपये दिए प्रभावित लोगों को, जब लिस्ट बनाई गई मारे हुए लोगों और प्रभावित लोगों की तो करीब 5 लाख लोग निकले, जब ये रुपये बाटा गया तो एक नया मजाक सामने उभरकर आया लगभग 12000 रुपये हर एक के हिस्से में आया, अब आप विचार कर सकते है कि एक मौत की कीमत मात्र 12000 रुपये।
ऐसी घटनाओं को लेकर जितनी जिम्मेदार कंपनियां होती है उतनी जिम्मेदार मौजूदा सरकारे भी होती है
ऐसी घटनाओं को लेकर जितनी जिम्मेदार कंपनियां होती है उतनी जिम्मेदार मौजूदा सरकारे भी होती है
विशाखापट्टनम गैस कांड -
भोपाल गैस कांड को बताने का मुख्य उद्देश्य यही था, क्योंकि देश भोपाल जैसी घटना अभी बीते दिनों 7 मई 2020 को घटी, आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में गुरुवार को एक रसायन संयंत्र में जहरीली गैस रिसाव की घटना हुई।
रिसाव से अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है। जब यह घटना घटी उस समय चारों तरफ तबाही का मंजर था। लोग बदहवास होकर इधर से उधर भाग रहे थे। इस बीच केंद्र सरकार ने कहा है कि वहां एनडीआरएफ के सीबीआरएन (रसायन, जैविक, रेडियोधर्मी और परमाणु) विशेषज्ञों की एक टीम और मेडिकल विशेषज्ञ भेजी जा रही है।
वहीं, मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने इस घटना में मारे गए लोगों के परिजनों को 1 करोड़ रुपये की सहायता राशि देने का ऐलान किया है। गैस कांड के चलते जिन लोगों का वेंटिलेटर पर इलाज चल रहा है उन सभी लोगों को 10 लाख रुपए दिए जाएंगे।
इस घटना में सरकार ने लोगों की मदद काफी हद तक कि, और अभी पूरी जानकारियां नहीं मिल पा रहीं है कि गैस के रिसाव का मुख्य कारण क्या है जाँच एजेंसिया कार्य कर रहीं है
विदा लेता हू मिलता हूँ नए ब्लॉग में खुश रहिए मुस्कराते रहिए अपना और अपनों का ख्याल रखिए 🙏
Nice explain
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