सत्ता मामा की दबदबा महराज का!

*सत्ता मामा की, दबदबा महाराज का*
गुरुवार को देश के अजब प्रदेश में गजब तरीके से बनाई गई सरकार के मंत्रिमंडल गठन की प्रक्रिया लगभग रूप से पूर्ण हो चुकी है।
 काफी दिलचस्प तथ्य है यह समझना, कि मध्य प्रदेश में बीजेपी मंत्रिमंडल का गठन हुआ है या बाजेपी मंत्रिमंडल में कांग्रेस का विस्तार ?
34 मंत्रियों में से, 33 मंत्रियों का पद वितरण हो गया है।
इसमें सिंदिया के ख़ेमे से 11 दलबदल नेताओं को सफलता हाँथ लगी है, 3 अन्य कांग्रेसी बागी नेताओं को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है.. इस हिसाब से बीजेपी ने अपनी विशाल दरियादिली प्रदर्शित की है, और करे भी क्यों ना ?
कमलनाथ सरकार को गिराने में मुख्य किरदार इन्ही पूर्व विधयकों ने निभाया था।
लेकिन इसके विपरीत बीजेपी के कुछ दिग्गज नेताओं जैसे उमा भारती आदि ने जातिगत एवं क्षेत्रीय असन्तुलन का हवाला देते हुए असहमति जाहिर की है और मध्यप्रदेश प्रदेश अध्यक्ष को पत्र भी लिखा है।
जो कि गलत नही है, मध्य प्रदेश के कई ऐसे अनुभवी विधायक है जो 3 बार से लेकर 7 बार तक लगातार विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से विजयी हुये है, इसके बावजूद इस बार उन्हें मंत्री पद का स्वाद चखने को नही मिला है।
क्षेत्रीय अस्पष्टता की बात की जाये तो, यह मंत्रिमंडल मध्यप्रदेश का नही, बल्कि ग्वालियर और चंबल सम्भाग का मंत्रिमंडल प्रतीत हो रहा है।
33 चुने हुए मंत्रियों में से 16 मंत्री ग्वालियर और चंबल सम्भाग से ताल्लुक रखते हैं।
जाहिर सी बात है कि बीजेपी के भीतर सिंधिया का भारी प्रभाव देखने को मिला है।
वहीं, विंध्य क्षेत्र से बड़ा चौकाने वाला तथ्य सामने आया है, वहाँ से किसी  भी विधायक को मंत्रीमंडल में शामिल नही किया गया है।  उसी प्रकार बुंदेलखंड सम्भाग से मात्र एक मंत्री चुना गया है।
यही कारण है कि, मंत्रिमंडल गठन के कुछ घण्टों बाद से ही नाराज पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन की खबरें आने लगी है।
गौरतलब है कि, दलबदल कर बाजेपी में शामिल हुए कांग्रेसी पूर्व विधायक जिन्हें मंत्रिमंडल में स्थान प्राप्त हुआ है वे अपने विधायक पद से इस्तीफा दे कर पार्टी में शामिल हुये थे अतः उन्हें राज्यमंत्री तो चुन लिया गया है किंतु वे विधायक नही हैं।
देखने योग्य रहेगा कि उन विधायकों द्वारा उपचुनाव में क्या कदम होंगे जिसके जरिये वे पुनः विधायक की गद्दी पा सकेंगे।
हो सकता है सत्तापार्टी के खेमें से यह दुआ मांगी जा रही हो कि आगामी उपचुनाव में रिजल्ट उम्मीद से उलट आये, और लगीलाग में जो मंत्रिमंडल से वंचित रह गये है, उन्हें अपनी दावेदारी साबित करने का एक और मौका मिल सके।
विपक्ष द्वारा, इसके प्रति कोई खास प्रतिक्रिया नही आई है, ऐसा लगता है कि कमलनाथ और उनके साथियों ने खुद को साइलेंट मोड पर साध रखा है।
कमलनाथ जो ट्विटर पर काफी सक्रिय रहते हैं, मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चुप्पी धारण किये हैं।

हो सकता है कि वे wait and watch की थ्योरी का पालन करना चाह रहे हों, या विपक्ष की क्षीणता को महसूस कर रहे होंगे।


इसके साथ ही महाराज का फिल्मी अंदाज में दिया गया एक वक्तव्य भी काफी ट्रेंड कर रहा है, "टाइगर अभी जिंदा है" !!!!

खैर हम सभी जानते है कि एक जंगल में दो शेरों का रहना उतना आसान नही होता।
मध्यप्रदेश के सियासी रण में मामा की लोकप्रियता भी किसी बाघ से कम नही है, शेर बूढा हो जाने पर और अधिक खतरनाक हो जाता है, ये बात भी किसी से छिपी नही है।
वो तो वक़्त ही बताएगा कि एक म्यान में दो तलवारें कैसे आपसी सामांजस्य स्थापित करती है?
लेकिन पार्टी में दिग्गज नेताओं से लेकर आम कार्यकर्ता तक स्पष्ट असन्तोष जगजाहिर हो रहा है ।

एक नेता का बयान जिससे मैं काफी हद तक इत्तेफाक रखता हूँ कि, लोकतांत्रिक तरीके से बनी सरकार को शुभकामनाएं देना जायज है, किन्तु यह सरकार जिसने कोरोना काल का फायदा उठाकर, लोकडाउन्न से मात्र एक दिन पहले शपथ ली हो.. वह अधिक से अधिक बधाई की ही पात्र है।


शिवराज मंत्रिमंडल को बधाई!!!!
       
                                                🖋️वैभव चौबे 

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