ऑनलाइन एजुकेशन, बढ़ता डिप्रेशन*
ऑनलाइन एजुकेशन, बढ़ता डिप्रेशन*
भारतवर्ष, जिसे पुरातन काल में विश्वगुरु की संज्ञा से नवाजा जाता था, वहाँ आज की स्थिति काफी चिंतनीय है।
तालाबन्दी से ना केवल हमऔर हमारा देश, बल्कि सम्पूर्ण विश्व हताहत हुआ है लेकिन इस बात में भी कोई शंका नही है कि अन्य राष्ट्रों की, इस बीमारी के परिपेक्ष्य में रोकथाम सम्बन्धी नीतियां हमसे कहीं बेहतर थी.. जिसके चलते कई राष्ट्रों में पूर्ण अथवा आंशिक विजय पा ली है।
भारत में लोकडाउन्न के चलते अनेक गहन समस्याओं में से एक है शिक्षा सम्बन्धी समस्या!!!!
इस बात से कोई इंकार नही कर सकता कि किसी राष्ट्र के सुभविष्य की परिकल्पना.. उसके सभ्य, जागरूक और शिक्षित वर्ग पर निर्भर करती है।
सरकार द्वारा इन समस्याओं के निवारण हेतु कई नीतियां अपनाई जा रही है.. महामारी के इस दौर में, जो छात्र शिक्षा प्राप्ति से वंचित है। उनके लिये केंद्र व राज्य सरकारों ने मिलकर ऑनलाईन शिक्षा प्रबन्धन का उपाय खोजा है।
किन्तु वास्तविकता के आधार पर देखा जाये तो यह व्यवस्था उतनी प्रभावशाली प्रतीत नही हो रही है।
सम्भवतः 60 से 70 प्रतिशत छात्रों के पास ऑनलाइन उपकरणों (एंड्रॉयड या ios मोबाइल फोन, मोबाइल नेट इत्यादि) की उपलब्धता हो सकती है किंतु हमे यह भी नही भूलना चाहिये कि भारत की लगभग आधी आबादी गरीबी के उन झरोखों से ताल्लुक रखती है, जहाँ इस आधुनिकता के प्रकाश को पहुंचना उतना आसान नही है।
मैं ये जो बातें कह रहा हूँ वो अतार्किक नही है, यदि ऐसा ना होता तो केंद्र सरकार को भारत की 60 फीसदी (80 करोड़) जनता के लिये मुफ्त राशन की व्यवस्था करने की नौबत नही आती।
आप ही विचार कर के बतलायें कि जो लोग गेंहू, चावल और चना जुटाने में असमर्थ है.. वे कैसे एंड्रॉयड मोबाइल की खरीददारी कर सकते है?? और जिनके पास पहले से फोन उपलब्ध है, वे नेट रिचार्ज कहाँ से कराएंगे??
इस वक़्त तो अम्बानी साहब की दरियादिली भी दृष्टिगोचर नही हो रही है कि वे छात्रों के लिये डेटा मुफ्त कर दें खैर, ये उनका व्यक्तिगत नजरिया है.. मैं इस पर कोई टिप्पणी नही कर सकता।
यदि यू.पी बोर्ड से शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों का डाटाबेस खंगाला जाये तब पता चलता है कि एक बड़ा हिसा ग्रामीण छात्रों से जुड़ा हुआ है।
जहाँ फोन पर बात हो जाये, वही बहुत बड़ी बात है.. नेट उपलब्धता तो बहुत दूर की चीज है।
नौबत यह है कि छः लोगों के कृषक परिवार में.. मुखिया के तौर पर किसान है उसकी बीमार पत्नी और चार बच्चे हैं जो क्रमशः तीसरी, पांचवी, सातवीं और नवीं कक्षा के विद्यार्थी है।
पिता के रूप में उस किसान की ज़िम्मेदारी है कि चारो बच्चों को अलग अलग मोबाइल दिलाया जाये,
एक फ़र्जदार पति के रूप में, उसका दायित्व है कि पत्नी का व्यवस्थित इलाज कराया जाये,
और निष्ठावान किसान होने के नाते उसका परम् कर्तव्य है कि हाल में ही चल रही रवि की बुआई में उचित निवेश किया जाये।
निर्धनता के इस काल में.. तीनों दायित्वों का निर्वहन करना, क्या उस किसान के लिये सम्भव है??
चलिये अब सम्पन्न खेमे की बात कर लेते है, जो परिवार अपने बच्चों को इन सुविधाओं से परिपूर्ण करने में सक्षम है.. क्या वे पूर्णाश्वस्त है कि उनका बच्चा वाक़ई पढ़ रहा है??
आपने बड़े बुजुर्गों के मुंह से एक बात सुनी होगी, कि बिना भय के पढ़ाई नही होती।
ऑनलाइन कक्षा के समय ही कैमरा क्षेत्र से बचकर जो कि काफी सीमित होता है, आप लूडो भी खेल सकते है, और शायद कभी खेले भी होंगे।
भाई वाह.....
ना अध्यापक का भय और ना ही गृहकार्य पूर्ति की चिंता.. काश यह शिक्षा पद्धति हमारे समय मे भी होती।
थोड़ा अधिक मजाकिया हो गया, चलिये अब मुद्दे पर आता हूँ कि एक और नकारात्मक तथ्य सामने आता है इस संदर्भ में।
अमूमन, विद्यालय का दैनिक समय 6 से 7 घण्टे का होता था, अब स्कूल/कॉलेज ने उसे 2-3 घण्टे तक ही सीमित कर दिया है, जिसमें शुरुआती 30 मिनिट तो माह शुल्क वसूली के लिये आरक्षित है।
6 घण्टे में दी जाने वाली शिक्षा, क्या दो या ढाई घण्टों में समझ पाना सम्भव है??
हाँ, हो सकता है कि इतिहास, समाजशास्त्र और अन्य संवैधानिक विषयों को सूची से हटा दिया होगा क्योंकि उनका संशोधित संस्करण आपको व्हाट्सएप्प मीडिया द्वारा मिलता रहता है।
जैसे, राष्ट्रपिता का हत्यारा अब देशभक्त बन चुका है, गांधी को विभाजन का मूलाधार घोषित कर दिया गया है, नेहरू और सरदार पटेल की आपसी शत्रुता!!!!
और भी बहुत है, लेकिन अधिक गहराई में जाकर आज के विषय को नही खोना चाहता।
वैज्ञानिक नजरिया भी मेरी इस असहमति को और पुख्ता करता है। उम्र के उस पड़ाव में, जहाँ हम खुद को सुदृण मानकर चलते है.. मोबाइल, लैपटॉप या अन्य डिजिटल स्क्रीन के सामने लगातार और अधिक समय तक बैठने से मानसिक तनाव का अनुभव करने लगते है, आंखों में भी पीड़ा होने लगती है।
जरा सोचिये, वे तो फिर.. उभरते हुए पुष्प के समान काफी छोटे है, उन पर क्या प्रभाव होगा??
एक ओर तो हम, अपने बच्चों को इसके दुष्प्रभाव बताने का प्रयास करते रहते है, मोबाइल से दूरी बनाने की नसीहत देते हैं..
और दूसरी तरफ, खुद ही इन तत्वों को बढ़ावा दे रहे हैं!!!!
अंत मे सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ.. कि बेहतर स्वास्थ्य अधिक महत्वपूर्ण है, अन्य हर स्मृद्धिपूरक तत्वों से.. फिर चाहे शिक्षा ही क्यों ना हो।।
*रहेगा भारत, तभी ना बढ़ेगा भारत*
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