भारत में digitalization की ज़मीनी हकीकत

 

         भारत में Digitalization की जमीनी हक़ीक़त!



भारत में 2014 से पहले digitalization से जुड़े शब्दों को भारत का एक छोटा तबका ही जानता समझता था लेकिन 2014 के बाद मौजूदा सरकार ने भरपूर जोर दिया, जिससे पहले की अपेक्षा इन्टरनेट से संबधित क्रिया या उपकरणो का उपयोग बड़ गया ।
       8 नवम्बर 2016 को भारत में नोटबन्दी के समय डिजिटल दुनिया से दूर रहने वाले लोगों की इसकी अहमियत समझ आई
इस पल से पूरा भारत डिजिटल से जुड़ी अधिकतर बातों से रूबरू हो गया था, उस वक़्त digitalization की असफ़लता का कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पहुचने बाली सुविधाए बनी जैसे नेटवर्क, बिजली, जागरुकता ना होना, जमीनी हकीकत पर इस प्रक्रिया में बहुत सी समस्याएं आई
कुछ समस्याओ को समय के साथ निजात मिल गया कुछ प्रयासरत है अभी!


मेरा व्यक्तिगत मानना है कि सरकार को सर्वप्रथम सरकारी कार्यो और उन से संबधित फीस जमा करने के प्रकिया को जोर देना चाहिए था। ऐसा भी नहीं है कि सरकार ने किया नहीं सरकार तो हर कार्य करती है, लेकिन आधा अधूरा जैसे...
जैसे कुछ सरकारी संस्थाएं अभी भी फीस जमा करने के लिए डिमांड ड्राफ़्ट की मांग करती है, या संस्थाओं में किसी भी प्रकार की फीस जमा करनी हो वो कैश की ही माँग करती है, जैसे विद्यार्थियों को back form भरना हो तो उन्हें संस्था मे जाकर कैश ही देना होता है बहीं दूसरी तरफ जब हम किसी यूनिवर्सिटी या कोई भी संस्था हो उसके प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन करते है तो आपको डिजिटल payments का ही विकल्प दिया जाता है, सरकारी संस्थाएं और उनके कर्मचारी खुद निश्चय नहीं कर पाते कि उन्हें फीस किस रूप में लेनी है
यह हाल शिक्षा संस्थानों का है, ऐसा ही हाल और दूसरी अन्य संस्थानों का है
हल - online और offline दोनों विकल्प होने चाहिए किसी भी प्रकार की फीस हो 🙏

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