सुशांत , रिया और कंगना के मुद्दो के सामने फीके पड़े, बढ़ती बीमारी, बेरोजगारी और बदहाली जैसे मुद्दे..!

सुशांत , रिया और कंगना के मुद्दो के सामने फीके पड़े, बढ़ती बीमारी, बेरोजगारी और बदहाली जैसे मुद्दे..! 

पहले ,   सुशांत और रिया फिर कंगना.. वास्तव में सिनेमा ने देश का बेड़ा गर्त कर रखा है.. इसके आगे बढ़ती बीमारी, बेरोजगारी और बदहाली सब फीकी है..

            बीते महीने सुशांत की मौत भारतीय मीडिया को नया काम काज दे गई और सत्ता में स्थापित राजनीतिक पार्टियां अर्थार्त् सरकारे जमीनी हकीकत के मुद्दों से बच गई जैसे हमेशा से बचती आई है भले ही सरकारें और प्रशासन सुशांत को न्याय ना दिला पाई लेकिन सुशांत मीडिया को रोजगार और सरकार को उनकी नाकामी से बचा गए, लेकिन थी तो नाकामी ही कितने दिन छिपती..!
  मानो सुशांत कोई मर्डर केस ना होकर एक राजनीति कार्ड हो जिसका उपयोग राज्य की सरकार तो कर ही रहीं है साथ में केंद्र भी इसका उपयोग करने से ना चूक रही है, जब आप न्यूज चैनल खोलकर बैठते हैं तो आपको जहां तक है यही महसूस होगा कि भारत में पहली बार मर्डर हुआ हो, या यह केस बड़ा ही पेचीदां हो
धीरे-धीरे रिया भी इस केस में भागीदार हो गई, मर्डर किसने किया किसने नहीं किया इसका पता तो ना प्रशासन को है ना जाँच एजेंसियों को लेकिन मीडिया को सब पता है उन्होंने और राज्यों एक देश को दो पक्षों में बाट दिया, ये सब देख कर ऐसा प्रतीत होता मानो जैसे भारत में ना बेरोजगारी है ना बदहाली और भारत में सबसे जरूरी मुद्दा बन गया आज के समय, इससे दो पक्षों को जरूर रोजगार मिला है एक मीडिया दूसरा सरकार
बेरोजगारी एक मार - 

      

यह आकड़े फरवरी के है यानी जब भारत में corona का कोई प्रभाव नहीं था यानी corona से पहले भी बेरोजगारी थी और Corona के बाद.... 
फरवरी के महीने में देश में बेरोजगारी की दर 7.78 प्रतिशत हो गई है. अक्टूबर, 2019 के बाद यानी पिछले चार महीने में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी यानी CMIE ने 2 मार्च को यह जानकारी दी. CMIE एक निजी थिंक टैंक है.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी में बेरोजगारी दर 7.16 प्रतिशत थी. यह आंकड़ा देश में आर्थिक मंदी की गंभीरता को दिखाता है.
मृत्यु दर - भारत मे एक विनाशक युग 
भारत में प्रतिदिन 65500 लोग मरते है, जिसमें 1 से 3 % लोगों की हत्या हुई होती है और लगभग इतना ही प्रतिशत महिलाओं के साथ बलात्कार होता है 18 से 22 % तक इसमे आत्महत्या बाले होते है और बचे हुए एक्सीडेंट और कई अन्य बीमारियो से मरते है
                          लेकिन मजाल है मीडिया और सरकारों के सिर पर जूं भी रेंगी हो, हाँ कभी कभी सरकार और मीडिया भी इन छोटे लोगों में से भी किसी को चुन लेती है और उनकी हितेसी बनने की कोसिस करती नेताओ की भी मंडली घटित घर में आती जाती है लेकिन आश्वासन के सिवाय कोई कुछ नहीं देकर जाता
   घटित   केसों को मीडिया के द्वारा रखना गलत नहीं है लेकिन 24 घंटों में से 18 घंटे बही केस पर चार लोगों को बैठाकर डिबेट के नाम पर लड़ना उचित तो नहीं है, देश में और भी घटनाये घट रहीं है, और मीडिया से भली भाँति कौन जानता होगा कि वो देश को किस ओर मोड़ने की कोशिस कर रहे हैं।
कुछ दिनों से कंगना भी बहुत सुर्खियां बटोर रहीं हैं इन्हें एक समय bollywood से अति प्रेम था लेकिन हाल ही के दिनों में ऐसा नहीं है और अपने वक्तव्यो से चर्चा का विषय बनी हुई है
जैसे BMC के कर्मचारियों को मुग़लों की सेना बोलना..!
मुंबई को पाक अधिकृत कश्मीर बताना

           भारत की बदहाली के कारणों में से एक मुख्य कारण
सिनेमा जगत के लोगों का मीडिया और सरकारों पर अच्छी पकड़ है, इसको देख कर समझ ही नहीं आता कि सिनेमा मीडिया और सरकार को नचा रहा है या सरकार सिनेमा को
मानता हूं देश अलग ही बदहाली से गुजर रहा है ये बदहाली सरकार और मीडिया ही सम्भाल सकती है क्योंकि भारत के दो मुख्य पायदान है जिस भारत टीका हुआ है
                               ✍️   गुमनाम मुसाफिर 

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