हिन्दी दिवस एक राष्ट्रीय पर्व..!
हिंदी दिवस एक राष्ट्रीय पर्व
इतिहास शब्द से आप सब भली भांति परिचित होंगे हर एक वस्तु का हर एक जगह का हर एक महान आदमी का कोई ना कोई इतिहास होता है ऐसे ही तमाम भाषाओं का कोई ना कोई इतिहास है इतिहास पूर्व कालों में रचा गया है ऐसे ही देश की महानतम भाषाओं में से एक महान भाषा हिंदी का कुछ विशेष इतिहास इस प्रकार है हिंदी वास्तव में एक फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है हिंद या हिंद के वासियों से हिंदी शब्द की निष्पत्ति सिंधु अर्थात सिंध से हुई है। ईरानी भाषा में स का उच्चारण ह किया जाता था इस प्रकार हिंदी शब्द वास्तविक रूप से सिंधु शब्द का प्रतिरूप है कालांतर में हिंदू शब्द संपूर्ण भारत का पर्याय बन कर उभरा इसी हिंदी से हिंदी शब्द का विकास हुआ
हिंदी भाषा की 5, उप भाषाएं हैं और 10 गोलियां उपलब्ध हैं
1. पश्चिमी हिंदी (खड़ी बोली या कौरवी, ब्रजभाषा , हरियाणवी , बुंदेली, कन्नौज)
2.पूर्वी हिंदी ( अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी)
3.राजस्थानी (पश्चिमी राजस्थानी, पूर्वी राजस्थानी, उत्तरी राजस्थानी, दक्षिणी राजस्थान)
4.पहाड़ी ( पश्चिमी पहाड़ी, मध्यवर्ती पहाड़ी)
5.बिहारी( भोजपुरी, मगही, मैथिली)
हिन्दी भाषा का विराट विस्तार है पूरे भारत में भारतीय इतिहास में ऐसी दूसरी भाषा नहीं पनपी जिसकी इतनी उपभाषाएं और बोलियां हों हिन्दी भाषा में बहुत बड़े बड़े ग्रंथ लिखे गए।
कुछ कविताए तो हमने भी लिखी है जो इस प्रकार है
1. कविता शीर्षक ~सुनसान
हल - चल बाली सड़कों पर आज गुमनामी सी छाई है।
आज शहर भी कई अर्सो बाद सोया है!
जो धरा मनुष्य के शोरगुल से सहम सी गई थी,
वह कई अर्सो बाद आज़ फ़िर से मुस्काई है!
आज प्रकृति के उन जीवो की आवाज समझ आई है!!
जिस आवाज को मनुष्य कई अर्सो पहले भूल गया था....
हमने भी उसे (प्रकृति) खूब सताया है!
अब हमारी बारी आई है!!
हम ना इन्साफी की बाते करते रहे,
अब इन्साफ की बारी आई है!
हमने भी हर मोड़ पर उससे खेला है!
अब उसकी हमसे खेलने की बारी आई है!!
अभी तक हमने सुकून की नीद सोई है!
अब कई अर्सो बाद उसके सोने की बारी आई है!!
कभी हमने जंगलो को उजाड़ कर नए नए शहर वसाये है!
अब शहरों को उजाड़ कर जंगलों को बसाने की बारी आई है!!
#save_nature#protect_nature
2.कविता शीर्षक ~फरेब का दौर
बहुत दिनों बादआज फ़िर फरेब का दौर आया है!
ये कलियां फ़िर से मुरझाएगीं...!
इस दौर में कुछ कलियां मुरझाने के लिए खेलेंगी
और कुछ खिलीं हुई कलियां मुरझाएगीं
ये कलियां दो पल खिलने के लिए
जिंदगी भर के लिए खिलाना भूल जाएंगी..!
इन्हें नहीं पता, आज ये कलियां इन पलों के साथ खुश हैं
कल यही पल इन्हें रुलाएगें
आज फ़िर फ़रेब.........
इन्हें नहीं पता ये जिस्म की भूखं हैं
तुम ना बातों से माने तो किसी और को अजमाएगें!
क्योंकि वो अपनी हवस को रोक ना पाएंगे
किसी के कपड़े उतरेंगे
और कुछ कपड़े उतारने के लिए ख़ुद तैयार हो जाएंगे
आज फ़िर फरेब...........
तुम तो अपनी हवस बाली मोहब्बत करके चले जाओगे
लेकिन सच्ची मोहब्बत फिर से जिंदा ना हो पाएगी
आज फ़िर फरेब...........
वो तो तुम्हारे साथ जिंदगी भर रहना चाहती थी
उसे क्या पता था कि ये जिंदगी भर रख ना पाएंगे
आज फ़िर फरेब...........
जब बिस्तर ही गर्म करने थे तुम्हें
तो सच्ची मोहब्बत को बदनाम करके क्यों चले गए
मानता हूं, दौर फरेबीयों के साथ है,
तो आप किस नियत से हमारे साथ खड़े हो पाओगे
आज फ़िर फरेब..........
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