जिंदगी की दौड़ में गुम होता जीवन
जिंदगी की दौड़ में गुम होता जीवन
विश्व गुरु की ओर अग्रसर हो रहे भारत जैसे देश की बहुत बड़ी सामाजिक समस्या है रेलवे क्रॉसिंग लगने पर या चौराहों पर दिन प्रतिदिन भीख माँगते छोटे बच्चों की संख्या बढ़ रही है आये दिन भीख मांगने के चक्कर में बच्चों के एक्सीडेंट हो रहे है!
नगरों में आजकल भीख मांगना एक धंधा बन चुका है यह काम गंदा तो है पर धंधा है शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहां मासूम बचपन सड़कों पर भीख मांगने और भटकने पर मजबूर है फिर भी इस पर कैसे यकीन न किया जाए कि यह बचपन बड़ा होकर अपराधी और नशेड़ी नहीं बनेगा भले ही सरकार व प्रशासन इस और कई योजनाएं चला रहे है।
सर्व शिक्षा अभियान फ्री शिक्षा मिड डे मील, ड्रेस,किताबें सरकार हर वोह बुनियादी चीजें स्कूलों में मुहैय्या करा रही है फिर ऐसी क्या बात बच्चे भीख, बालश्रम, या फिर बच्चों के माता पिता बच्चों को स्कूलों में भेजने के बजाए उनसे काम करा रहे हैं बच्चे भीख मांगने पर मजबूर हैं इस तरह के मामले बाज़ारों और चौराहों पर रोज़ देखने को मिलते हैं।
जो कि बालश्रम और भीख देकर इसको बढ़ावा दिए हैं अक्सर दुकानों पर सड़कों ओर घरों में मजदूरी करते दिखते है यह मासूम बच्चे लेकिन प्रशासन यह सब देखते हुए भी आँख बंद किये हुए इसके लिए प्रशासन के अलावा कहीं न कहीं हम भी पूरी तरह जिम्मेदार है परंतु कोई भी अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार नहीं समय की जरूरत है कि भीख मांगने के इस मामले को बाल मजदूरी से भी पहले उठाया जाना चाहिए झाँसी जैसे शहर में सेंकड़ों भर से अधिक बच्चे भी भीख मांग रहे हैं
साथ ही नई नई लतों के आदि हो रहे है जैसे उनके लिए सिगरेट और गुटखा जैसे नशे का उपयोग करना तो दिनचर्या का एक कार्य बन चुका है!
पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि हर साल हज़ारों बच्चों को घर से अगवा कर लिया जाता है और उन्हें भीख मांगने पर मजबूर किया जाता है. इस फ़ोटो में एक छोटी सी बच्ची दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में भीख मांगती दिख रही है.!
समस्या का समाधान अखिर कैसे ~
सरकार को सहज कदम उठाने होगे और नीतियों का निर्माण कर इनके लिए अलग से सोचना होगा।
प्रशासन को अपने कानूनी अधिकारों का उपयोग कर इस समस्या की जड़ तक पहुचना होगा जब ही ऐसे अभिशाप से भारत मुक्त होगा।
समाज में चल रहे सामाजिक कार्यक्रमों मे एक इस भाग को भी जोड़ना होगा।
समाज को सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना होगा। तब बाल भिखारियों के पुनर्वसन की जरूरत होगी। उनकी शिक्षा, सेहत और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी निभानी होगी।
ऐसी रूम में बैठने के बाद नेता और अधिकारियों को ये सब नही दिखाई देता
ReplyDeleteयही तो वास्तविकता है देश की
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