विचारnama लेख ~1

जाड़े का दिन सूरज ढ़ल रहा था, हल्की हल्की ठंडी हवा चल रही थी जिससे शरीर में उत्पन्न कप ~कपाहट चाह कर भी नहीं रोक पा रहे थे मैं और मेरा मित्र ढलती शाम के साथ घर की ओर चल रहे थे! ओये भाई तुझे सामने कुछ दिख रहा है "मित्र ने कहा" नहीं भाई कुछ खास तो नहीं जैसे तुम और मैं घर जा रहे हैं वैसे ही सब अपनी अपनी गंतव्य स्थान की ओर जा रहे हैं "मैंने कहा" अरे तू क्या पागल है देख तो सामने क्या है "मित्र ने कहा " भाई मुझे दिख रहा है सामने से दो किशोरावस्था में प्रवेशित लड़कियां आ रहीं हैं जिसमें एक लड़की पूरे वस्त्रों ढकी हुई और दूसरी लड़की अर्द्ध वस्त्रों से ढ़की हुई कप कपाते हुए दिसम्बर की कातिलाना सर्दी को ठेंगा दिखाते हुए अपने गंतव्य स्थान की ओर निरंतर बड़ रही है "मैंने कहा" सच में भाई तुम्हें कुछ देखने के बाद कुछ फर्क़ नहीं पड़ा, "मित्र ने कहा" भाई जहाँ तक है आप उसके वस्त्रों के ऊपर, उसके उघरे हुए अंग जो वस्त्रों से झाँक रहे है शायद आप उसके बारे में कल्पना कर रहे होंगे, स्त्रीत्व पर विचार करके उस लड़की पर मन ही मन लांछन लगा रहे ह...