विचारnama लेख ~2 मासूमियत देखकर आप भी कायल हो जाएंगे
01/01/2021
साल का पहला दिन अमूमन सबके लिये ख़ास होता है
कुछ लोगों को छोड़ कर और ये लोग भारत में बहुत बड़ी है संख्या में पाये जाते हैं अब इस कहानी को शुरू से शुरू करते हैं
मैं और मेरा मित्र शेखर आज नव वर्ष के उपलक्ष में कुछ समय के लिए खुद को विद्यार्थि जीवन से दूर रख कर शांति से कुछ पल बिताने के लिये बुंदेलखंड के झाँसी शहर में एक छोटी सी चोटी पर स्थित मेजर ध्यानचंद्र जी की प्रतिमा के पास बिताने वाले थे क्योंकि Corona के कारण शहर के नगर निगम के पार्क बंद चल रहे है और रेस्ट्रां या निजी पार्क में जाना हम लोगों के औकात से बाहर है इसलिए निश्चय किया गया की मेजर जी की प्रतिमा को घूमने चलेंगे
भाई तू पालीटेक्निक कॉलेज के पास मिल, " शेखर ने कॉल करके बताया"
मैं उस वक़्त अनुराग पाठक जी की '12th फेल ' हल्की धूप में बैठे हुए पढ रहा था। उसका कॉल आते ही मैं तैयार होकर 10 मिनट के दरमियाँ पालीटेक्निक कॉलेज पर पहुंच गया शेखर अभी तक बहां नहीं पहुचा था, मैं पास में खाली पड़े रेडी बाले ठेले पर बैठ कर उसका इंतजार करने लगा, कुछ मिनट बाद शेखर भी पहुच गया।
शेखर कुछ नाम गिनाते हुए बोल रहा था की ये आ रहा वो आ रहा है
अब हम दोनों इंतजार करने लगे तीसरे चौथे लोगों का...
अब जो दृश्य सामने आया उसे ब्यान करने के लिए सायद शब्द पूरे ना हो! करीब 4 से 5 साल की उम्र का एक लड़का जरूरत से भी कम कपड़े नाक निरन्तर रुकने का नाम नहीं ले रही मासूमियत ऐसी की जल्लाद भी कायल हो जाए मैं उस दृश्य को देख कर निश्चय नहीं कर पा रहा रहा कि इसका गुनाहगार कौन है ऊपर वाला जिसके अस्तित्व को मैं नकारता हूँ या वो समाज के ठेकेदार जो धर्म को बचा कर इंसानियत का गला घोट रहे है या फिर वो राजनेता जो उस बच्चे के हिस्से की रोटी को भी नहीं बख्शते और अंततः उसके माँ बाप उनके बारे में क्या कहें जो जवानी की आग में इतना डूब गये की अपने शारीरिक सुख को प्राप्त करने के लिये वो ये गलती कर बैठते है जिससे बिन जरूरत की संताने पैदा हो जाती है जो आज हमारे सामने भूख से भरे हुए चेहरे के साथ खड़ा था अमूमन सारे मांगने वाले बच्चे रुपये ही मांगते उन्हें इतनी समझ हो जाती है कि पैसा ही दुनिया की सर्व सुख वस्तु है लेकिन सामने खड़ा बच्चा शायद इस ड्रग्स जैसी वस्तु से अनजान था वैसे आज के समय रुपया ड्रग्स के समान ही है क्योंकि पूरी दुनिया इसके नशे में नशेड़ी बनी घूम रही है!
बच्चे ने धीमी आवाज के साथ खाने के बारे में कुछ कहा, लेकिन गाड़ियों की अबाज में उस बच्चे की आवाज कानो तक नहीं पहुंच सकी
खाना है कुछ, "शेखर ने बच्चे से पूछा"
बच्चे ने सिर हिलाकर इशारा किया, शेखर ने रोड के उस तरफ समोसे के ठेले की ओर इशारा करते हुए बच्चे से कहा वो खाना है
बच्चे ने दुबारा सिर हिलाकर इशारा किया।
शेखर ने मेरा हाथ खींचा और कहा चलो भाई इसे कुछ खिला देते है, मैंने इशारे में कहा शेखर से huuuu चलो..
ठेले पर पहुच कर शेखर ने बच्चे से पूछा क्या खाओगे
बच्चे ने समोसे की इशारा करते हुए कहा ये... कितने खाओगे, "शेखर ने दुबारा उससे कहा" बच्चे ने हाथ की एक उंगली उठाते हुए कहा एक...
समोसे वाले भाईया ने एक समोसा मटर के साथ बना कर दे दिया
मैंने उसे बगल में पड़ी बेंच पर उसे बैठा कर उसका समोसा उसके सामने रख उसे खाने की हिदायत देकर हम और शेखर आपस में बात करने लगे..
बस इतना अमीर बनना है कि ऐसे भूखे बच्चों को खिला पाउ, "अफसोस भरी साँस के साथ शेखर ने कहा"
बस शेखर की इस बात का मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा..
और फिर सरकार और धर्मांध लोगों को हम दोनों अपनी सहज भावों में गरियाने लगे..
यही वो लोग है जिन्हें पुराने साल का गम है ना नए साल की खुशी इन्हें बस रोटी चाहिए......
और पुनः हम अपने आने वाले मित्रों का इंतजार करने लगे जिसके साथ घूमने का प्लान था...!!
https://youtu.be/gqdEhw6pVGA
भाई आँखे नम हो गयी
ReplyDeleteSach m aankhien nam ho gyi bhai 🥺
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