विचारनामा :अभी तो मिली हो मरने की बात क्यों करती हो

विचारनामा के द्वितीय भाग में आपने पढ़ा की एजाज और आयु की कहानी को एक नया मोड़ मिल गया था और एजाज को उसकी प्रेरणा मिल गयी थीं

"पास है तू मगर मैं तुझसे दूर हूँ
मुस्कान है गर तू मैं अहसास हूँ
रास्ता है या कोई मंजिल है तू
गुमनाम है गर तू मुशाफिर मैं हूँ "
              :-गुमनाम मुशाफिर
आज इस गुमनाम मुशाफिर को नाम भी मिला गया और मंजिल भी मुशाफिर की मंजिल दोनों को एक दूसरे का साथ मिल गया था आयु एजाज की ताकत बन गयी थीं अब तो एजाज का दिल भी काम में नहीं लगता था हर पल बस आयु का ही ख्याल आता है उसी को महसूस करता है कभी उसकी फोटो देखता तो कभी उसके वीडियो को देखता और इंतज़ार करता है की कब वो फ्री हो तो बात करे पिछली रात भर बात होने के बाद एजाज सुबह उठता है और व्हाट्सअप स्टेटस लगाता है गुडमॉर्निंग आयु आई लव यू सो मच आयु ज़ब स्टेटस देखती है तो अजीब सी ख़ुशी मिलती है उसे वो एजाज के प्यार में पागल सी हो उठती है दोनों दिन भर बात करते है काम से रिलेटेड और ड्रीम से रिलेटेड की किसे क्या करना है आगे चलके एजाज बताता है की उसने इंजीनियरिंग की हुवी है और बीच में ही मन ना लगने के कारण इंजीनियरिंग छोड़ देता है आयु भी बताती है की उसे जज बनना है एजाज बहुत ख़ुश होता है ये जानके और कहता है की मैं सबसे कहूंगा की मुझसे मत उलझना मेरी वाली जज है एजाज ने कुछ लाइन अपनी आयु के लिए लिखी होती है


"रहनुमा हैं तू मेरी जिंदगी में, 
मुसाफ़िर हू में तेरी जिंदगी का, 
हाँ मानता हूं इत्तफाक था, तुमसे मिलना
फ़िर मिलने के बाद पता चला इत्तफाक तो नहीं हो सकता तुमसे मिलना, 
कुछ साज़िशें तुमने रची थी! 
कुछ साज़िशें हमने रची थी! 
यूँ कहें तो साजिशों की पहल इशारों से शुरू हुई थी! 
बस देखते देखते इशारों की जगह जुबां ने ले ली!!"
          :-गुमनाम मुशाफिर के नाम से
आयु को ये लाइन पढ़के एजाज पे बहुत प्यार आता है लेकिन कुछ लाइन अटपटी सी लगती है तो आयु इसको बदल के ठीक करती है

"रहनुमा सा हैं तू मेरी जिंदगी में,
मुसाफ़िर मैं भी हूँ तेरी जिंदगी में
हाँ मानता हूं इत्तफाक था यूँ मिलना
खुदा बनके आना तेरा मेरी जिंदगी में
इसी कसमकस में डूबा रहा
 फिर सोचा नहीं हो सकता
 यूँ आना इत्तफाक तेरा मेरी
इस जिंदगी में
कुछ साज़िशें तुमने रची थी!
कुछ साज़िशें हमने रची थी!
साजिशों की पहल हुवी उनके
इशारो से मेरी जिंदगी में
यूँही इशारो की जगह लफ्जो
 को मिल गयी मेरी जिंदगी में
प्यार फरमान क़ुबूल करके
वो शामिल हुवे मेरी जिंदगी में "
        :-मुशाफिर की मंजिल
और एजाज भी कहता है की आयु तुम क्या सोचती हूँ मेरे बारे में कुछ लिख के बताओ आयु तो लेखिका थीं वो भी जल्दी से वक़्त निकल के कुछ लाइन लिखती है

सर चढ़ के बोलता है मेरे तेरे इश्क़ का जादू
जप जाप जोगियो सा है तेरे हुस्न का जादू
तहजीब महफ़िलो सी है शोर मैकदो सा है
माशूक तेरी निगाह के तीर-ओ-कमान का जादू
दरिया तेरे इश्क़ का मेरे हर लब पे रवा है
 माशूक तू बंदगी है माशूक तू ही खुदा है
लफ्जो के आईने में तेरे हुस्न-ऐ-बया का जादू
जोड़े तमाम गिरे तेरे जज़्बो की सादगी पे
तेरे मोहब्बतों के आब-ऐ-रवा का जादू
सर चढ़ के बोलता है मेरे तेरे इश्क़ का जादू

इसी तरह से दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगती है एजाज भी अब बेधड़क अपने दिल की बात आयु से कहने लगता है ना आयु का मन लगता है एजाज के बिना ना एजाज का आयु के बिना एजाज को मंजिल और आयु को जीने की वजह मिल जाती है आयु जो हमेशा दुसरो को ख़ुश करना चाहती थीं उसे उसको ख़ुश देखने वाला मिल गया था आयु जज बनना चाहती है एजाज आयु के इसलिए सपने को जीने लगा है वो कहता है आयु से की आज तक ये सपना तुम्हारा था आज से मेरा भी है
एजाज जज के रूप मे आयु को देखना चाहता है और चाहता है की आयु जज बनके उसके स्टूडियो मे आये और उसका इंटरव्यू खुद एजाज ले और और वो वीडियो बहुत वायरल हो जाये एक पत्रकार और एक जज की जोड़ी बहुत ही उम्दा जोड़ी होंगी ये एजाज का सपना उसे रातो को सोने नहीं देता है
तो ये थीं एक कवियत्री और एक पत्रकार की प्रेम कहानी ना जाने किस हसींन पल मे आयु ने मैसेज किया था क्या सोचके किसे पता था ये पहला मैसेज दोनों को एक दूसरे की जिंदगी बना देगा 
इसी के साथ विचारनामा का तृतीय और अंतिम भाग समाप्त होता
#गुमनाम मुशाफिर
#मुशाफिर की मंजिल
लेखिका :-आयुषी सिंह

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