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ठगमानुष एक ऐसी उपन्यास की श्रृंखला जो पाठकों के बीच खूब सुर्खियां बटोर रही है

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"ठगमानुष" लेखक सुभाष वर्मा द्वारा लिखी गई एक मनोरंजक हिंदी अपराध कथा उपन्यास श्रृंखला है। कहानी कुख्यात ठग जगीरा उर्फ ठगमानुष के उदय के इर्द-गिर्द घूमती है। उपन्यास 1850 के दशक के भारत में सेट हैं और सभी रोमांच चाहने वालों के लिए एड्रेनालाईन से भरे पढ़ने का वादा करते हैं। — यदि आप एक अनुभवी लेखक से पढ़ने के लिए एक मनोरंजक, आधुनिक हिंदी अपराध कथा उपन्यास की तलाश में हैं, तो आगे देखें। ठगमानुष, भारत के अंधेरे पक्ष में स्थापित एक दिलचस्प उपन्यास श्रृंखला है। यह आपको ट्विस्ट और टर्न पर ले जाएगा क्योंकि नायक जगीरा अपने अन्य ठग साथियों के साथ लूट की यात्रा पर निकला है। भारत में ठगों के बारे में एक रोमांचक अपराध कथा उपन्यास श्रृंखला, ठगमानुष गिरोहों और गैंगस्टरों की अंधेरी और क्रूर दुनिया को जीवंत करता है जो निश्चित रूप से आपकी रुचि को बनाए रखता है। यह भारत में गिरोहों और गैंगस्टरों के अंडरवर्ल्ड के बारे में एक कहानी है - एक्शन, साज़िश और रहस्य से भरपूर। — यह सीरीज एक मास मर्डर थ्रिलर है जो आज से 150 साल पहले के समय में सेट की गई है। ठगों का एक खतरनाक गिरोह लोगों की हत्य...

खुद से लड़ना फिर जीतना , विचारनामा, लेख :08

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खुद से लड़ना फिर जीतना ये लड़ाई एक समयांतराल के बाद बार बार लड़नी पड़ती है , खास तौर तब जब आप युवा अवस्था में प्रवेश करते है और कई दोस्तों से दूर होना पड़ता है एक ऐसा पड़ाव जब आप अकेले होते हैं  कई बार आपको लगता है सब ठीक या ठीक हो जायेगा  वैसे कहें तो ठीक कुछ होता नहीं बस कुछ समय के लिए आप वो लड़ाई भूल जाते जो खुद से या अपने आस पास के लोगों से लड़ रहे होते हैं कई मायनों में हम बहुत खूब होते हैं जब हम आगे बड़ने की जद्दोजहद में लगे होते हैं एक पल के लिए जब हम टूटते रिश्तों और साथ छोड़ते दोस्तों के बारे में सोचते हैं मानो ऐसा लगता है की जीवन एक अहम हिस्सा गवां रहें हैं फिर इसी को नियती मान कर अपने मन और मस्तिष्क के बोझ का ठीकरा सामने वाले पर मढ देते हैं जिससे हमे महसूस होने लगता है की हम सही है सामने वाला गलत है फिर समय बाद मन में लड़ाई लड़ी जाती है और सामने वाले को सही और खुद को गलत बताने लगते कई ये लड़ाई बड़ी देरी से होती है जब तक नया परिणाम आता है तब तक काफ़ी देर हो चुकी होती है  

विचारनामा :अभी तो मिली हो मरने की बात क्यों करती हो

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विचारनामा के द्वितीय भाग में आपने पढ़ा की एजाज और आयु की कहानी को एक नया मोड़ मिल गया था और एजाज को उसकी प्रेरणा मिल गयी थीं "पास है तू मगर मैं तुझसे दूर हूँ मुस्कान है गर तू मैं अहसास हूँ रास्ता है या कोई मंजिल है तू गुमनाम है गर तू मुशाफिर मैं हूँ "               :-गुमनाम मुशाफिर आज इस गुमनाम मुशाफिर को नाम भी मिला गया और मंजिल भी मुशाफिर की मंजिल दोनों को एक दूसरे का साथ मिल गया था आयु एजाज की ताकत बन गयी थीं अब तो एजाज का दिल भी काम में नहीं लगता था हर पल बस आयु का ही ख्याल आता है उसी को महसूस करता है कभी उसकी फोटो देखता तो कभी उसके वीडियो को देखता और इंतज़ार करता है की कब वो फ्री हो तो बात करे पिछली रात भर बात होने के बाद एजाज सुबह उठता है और व्हाट्सअप स्टेटस लगाता है गुडमॉर्निंग आयु आई लव यू सो मच आयु ज़ब स्टेटस देखती है तो अजीब सी ख़ुशी मिलती है उसे वो एजाज के प्यार में पागल सी हो उठती है दोनों दिन भर बात करते है काम से रिलेटेड और ड्रीम से रिलेटेड की किसे क्या करना है आगे चलके एजाज बताता है की उसने इंजीनियरिंग की हुवी है और बीच में ही मन ...

अभी तो मिली हो मरने की बात क्यों करती हो l भाग :२

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विचारनामा' के पहले भाग में आपने पढ़ा आयु किस तरह खुद को मजबूत बना के रखती है कुछ वक़्त बात करते करते एजाज को भी आयु से बात करने में रूचि आने लगती है ना जाने कैसा खींचाव लगाव एजाज आयु से बात करने में महसूस करने लगता है एक तरफ एजाज डर भी रहा होता है की अपने  दिल की बात वो किस तरह से रखे। एक अजीब सी कसमकस उठ रही थीं एजाज के मन में लेकिन डर की वजह से वो कह भी नहीं पा रहा था इसी विचार को ध्यान में रखते हुए वो आगे अपने काम में व्यस्त हो जाता है शाम को आयु का व्हाट्सअप स्टेटस लगा होता है जिसमे एक गाना होता है "मुश्कुराने की वजह तुम हो, गुनगुनाने की वजह " अमूमन लोग इसे अपने प्रेमी या प्रेमिका के लिए डालते है लेकिन आयु की सोच ना जाने कैसी थीं उसने ये गाना अपनी "soul" यानि की आत्मा के लिए लिखा था इस गाने के निचे कुछ पंक्तियां लिखी हुईं थीं "the biggest reason for my smile is my memories, my thoughts, my pain, my hurdles, my motivation it is not a person it is my soul" ये कुछ बचपना सा लगता है ना  एजाज को भी कुछ समझ नहीं आया की आखिर बात क्या है कहना क्या...

अभी तो मिली हो मरने की बातें क्यों करती हो !

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अभी तो मिली हो मरने की बातें क्यों करती। हो  मंगलबार का दिन था , और सुबह के क़रीब 10 बज रहे थे ।   एजाज अपनी जानकारी को इंटरनेट कि वेबसाइट्स पर  खंगाल रहा था बीते दिनों की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा ही परेशान दिख रहा था जागे हुए उसे क़रीब 4 घंटे हो गए थे फिर भी नीद का नशा उसकी आंखो में झलक रहा था ऊपर से जो वह खोज रहा था वह भी नही मिल रहा था तो उसकी तो लगी पढ़ी थी   सुबह का वक्त था तो एक साथ कई मैसेज आ रहे थे एजाज स्क्रॉल करके हटाते जा रहा था  अब क़रीब 4 मिनिट बाद फिर मैसेज आए स्क्रॉल करके हटाने ही बाला था की उसमें उसे एक नये नंबर से Hi का मैसेज आया था  उसने मैसेज सीन किया जब तक और कुछ मैसेज आ चुके थे Hi I m ayu singh You massage me on fb I am a poet एक साथ कई मैसेज दाग दिए एजाज ने ज़बाब में ya लिखा अंग्रेजी भाषा में क्योंकि सारे मैसेज इंग्लिश में ही आ रहे थे कुछ समय तक एजाज इंग्लिश में ही रिप्लाइ करता रहा  लेकिन अभी तक जितने ज़बाब दिए गए थे उसमे खुद को संतुष्ट नही रख पा रहा  एजाज ने अपने आत्मसम्मान को एक कोने में रखते हुऐ लिख दिया...

सर आपको दुश्मन भी गुड मॉर्निंग करता है

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सर आपको दुश्मन भी गुड मॉर्निंग करता है  सुबह सुबह एक ऐसा प्रश्न दागा गया दक्षय पर की उसके सामने 3 साल की पूरी घटनाएं एक एक करके विजुअल स्क्रीन पर चलने लगी दक्षय ने  इस प्रश्न को अनसुना करते हुए hmm बोल कर उस स्टुडेंट पर जोर से चिल्ला कर बोल पड़ा की तुम अपना वर्क नोट करो दक्षय सायद इस प्रश्न का ज़बाब दे भी देता यदि स्टुडेंट के बदले में और कोई होता  आप सब सोच रहें होंगे ये कैसी कहानी है जो समझ ही नहीं आ रही है  चलो शुरू से शुरू करते हैं दक्षय का जब कभी शाम का प्रोग्राम बनता था तो दक्ष्य अपने स्टूडेंट्स को सुबह के वक्त पढा देता था  आज आज शाम दक्ष्य की  इक लेखक के साथ मीटिंग फिक्स हुईं थी इसलिए दक्ष्य अपने स्टूडेंट्स को मॉर्निंग में पढ़ाने पहुंच गया  क्लास स्टार्ट होते ही दक्ष ने अखिल को   साइंस के नोट्स अपने फोन में निकाल कर दे दिए अखिल जल्दी जल्दी लिखना और भी सब्जेक्ट है ,"दक्ष ने तनीषा की कॉपी का पेज पलटते हुए कहा " तनिषा अखिल की छोटी बहिन है जिसे दक्ष पढ़ाता है  दक्ष्य ने अपनी एक दोस्त को मॉर्निंग का मैसेज किया थ जब उसकी मॉर्...

विचारnama लेख ~4 इन स्थानों में अर्द्ध नग्न औरतों को देखने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है क्यों...?

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विचारnama लेख ~4 इन स्थानों में अर्द्ध नग्न औरतों को देखने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है क्यों...? 14 जनवरी.... मुद्दा विचारणीय है!                वैसे कुछ दिनों सर्दी का तापमान कुछ खास नहीं था कहने का तात्पर्य यह है की सर्दी अधिक नहीं थी लेकिन कुछ घंटों के दरमियान मौसम का रुख बदल गया था अभी मैं सर्दी को चिड़ा रहा था अब सर्दी मुझे चिड़ाने लगी थी जैसे तैसे रात के बाद 14 जनवरी की सुबह की शुरुआत हुई अर्थात आज मकर संक्रांति का त्योहार है वैसे सनातन व्यवस्था मे सभी त्योहारों का एक अलग ही महत्व है जिसमें एक कॉमन है कि त्योहार कुछ भी हो आपको बड़े भोर नहा धोकर तैयार होना ही अब मैं इस नहाने की जंग से भी जीत गया था चटकती धूप में बैठे हुए मनु जी का उपन्यास वेंटिलेटर इश्क पढ रहे थे तभी पास में रखे फोन से वाइब्रेशन की आवाज आई वैसे ये कॉल हमारे निहत्थे झूठे मित्र राजा की थी जिनकी 100 बातों में से 4 पर ही भरोसा किया जा सकता है सर जी बाला जी चले क्या, " फोन के उस ओर से अबाज आई" हाँ चलो, " हमने भी हामी भर दी क्योंकि ...