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Showing posts from September, 2020

जिंदगी की दौड़ में गुम होता जीवन

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         जिंदगी की दौड़ में गुम होता जीवन विश्व गुरु की ओर अग्रसर हो रहे भारत जैसे देश की बहुत बड़ी सामाजिक समस्या है रेलवे क्रॉसिंग  लगने पर या चौराहों पर दिन प्रतिदिन भीख माँगते छोटे बच्चों की संख्या बढ़ रही है आये दिन भीख मांगने के चक्कर में बच्चों के एक्सीडेंट हो रहे है! नगरों में आजकल भीख मांगना एक धंधा बन चुका है यह काम  गंदा तो है पर धंधा है शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहां मासूम बचपन सड़कों पर भीख मांगने और भटकने पर मजबूर है फिर भी इस पर कैसे यकीन न किया जाए कि यह बचपन  बड़ा होकर अपराधी और नशेड़ी  नहीं बनेगा भले ही सरकार व प्रशासन इस और कई योजनाएं चला रहे है। सर्व शिक्षा अभियान फ्री शिक्षा मिड डे मील, ड्रेस,किताबें सरकार हर वोह बुनियादी चीजें स्कूलों में मुहैय्या करा रही है फिर ऐसी क्या बात बच्चे भीख, बालश्रम, या फिर बच्चों के माता पिता बच्चों को स्कूलों में भेजने के बजाए उनसे काम करा रहे हैं बच्चे भीख मांगने पर मजबूर हैं इस तरह के मामले बाज़ारों और चौराहों पर रोज़ देखने को मिलते हैं।  जो कि बालश्रम और भीख...

राजनीति कहें या कहें अपराध की दुनिया

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राजनीति कहे या कहे अपराध की दुनिया..? वैसे तो देश दुनिया इस कृत्य से भली भांति परिचित है क्योंकि राजनीति का एक बहुत बड़ा भाग अपराध है। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं बाहर के भी कई देशों में राजनीति और अपराधों का घोल बखूबी परोसा जा रहा है। लेकिन भारत में राजनीति के द्वारा बढ़ता अपराध जोरों पर है, इसका कारण मात्र इतना सा है की हर एक राजनेता अपने आप को राजा सिद्ध करने में लगा हुआ है। इसलिए अपराध फल और फूल रहा है और युवा भी आपराधिक कार्यक्रमो बड़ चड़ कर हिस्सा ले रहे हैं...!                    भारत में जितने भी बड़े बड़े राजनीतिक दल है! सभी अपने आपराधिक कार्यक्रमों को आगे बड़ा रहे हैं, जो दल सत्ता में होता बही दल इस दौड़ में आगे होता। किसी भी राजनीतिक दल का एक छोटा सा भी कार्यकर्ता अपने आप को उस दल का सर्वे सर्वा के तौर पर प्रस्तुत करता। राजनेता कैसे देते हैं अपराध को बड़ावा..? इस खेल का खेला छोटी छोटी घटनाओं से प्रारम्भ होता है..! जैसे कोई बिना हेल्मेट या लाइसेंस के पकड़ा जाए या किसी के ...

क्या बेरोजगारी एक अभिशाप है भारत में..?जिम्मेदार कौन..?

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क्या बेरोजगारी एक अभिशाप है भारत में..? जिम्मेदार कौन..? देश की आजादी के बाद बेरोजगारी एक बहुत बड़ी समस्या बन गई भारतवर्ष के लिए जो आज भी जिंदा है आजादी के बाद कई अर्थशास्त्रियों ने नए नए प्रारूप बनाए कि जिससे बेरोजगारी जैसे अभिशाप से मुक्ति मिल सके कुछ प्रारूपों से भारत की स्थिति में कुछ हद तक बदलाव भी देखने को मिले लेकिन समय के साथ-साथ प्रारूपों की वरीयता प्रारूपों की वरीयता समय-समय पर कम होने लगी जिसकी जिम्मेदार कुछ हद तक सत्ताधारी सरकारें रही हैं और कुछ हद तक भारतीय नागरिक स्वयं इसके जिम्मेदार रहे हैं..! लल्लनटॉप की न्यूज़ पोर्टल के नए बेरोजगारी आंकड़े इस प्रकार है~      भारत में बेरोजगारी के नए आंकड़े आ गए हैं. फरवरी के महीने में देश में बेरोजगारी की दर 7.78 प्रतिशत हो गई है. अक्टूबर, 2019 के बाद यानी पिछले चार महीने में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी यानी CMIE ने 2 मार्च को यह जानकारी दी. CMIE एक निजी थिंक टैंक है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी में बेरोजगारी दर 7.16 प्रतिशत थी. यह आंकड़ा देश में आर्थिक मंदी की ...

हिन्दी दिवस एक राष्ट्रीय पर्व..!

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              हिंदी दिवस एक राष्ट्रीय पर्व इतिहास शब्द से आप सब भली भांति परिचित होंगे हर एक वस्तु का हर एक जगह का हर एक महान आदमी का कोई ना कोई इतिहास होता है ऐसे ही तमाम भाषाओं का कोई ना कोई इतिहास है इतिहास पूर्व कालों में रचा गया है ऐसे ही देश की महानतम भाषाओं में से एक महान भाषा हिंदी का कुछ विशेष इतिहास इस प्रकार है हिंदी वास्तव में एक फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है हिंद या हिंद के वासियों से हिंदी शब्द की निष्पत्ति सिंधु अर्थात सिंध से हुई है। ईरानी भाषा में स का उच्चारण ह किया जाता था इस प्रकार हिंदी  शब्द वास्तविक रूप से सिंधु शब्द का प्रतिरूप है कालांतर में हिंदू शब्द संपूर्ण भारत का पर्याय बन कर उभरा इसी हिंदी से हिंदी शब्द का विकास हुआ      हिंदी भाषा की 5, उप भाषाएं  हैं और 10 गोलियां उपलब्ध हैं 1. पश्चिमी हिंदी (खड़ी बोली या कौरवी, ब्रजभाषा  , हरियाणवी    , बुंदेली, कन्नौज) 2.पूर्वी हिंदी ( अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी) 3.राजस्थानी (पश्चिमी राजस्थानी, पूर्वी रा...

केंद्रीय कृषि अध्यादेश-2020 क्या किसानों को गुलामी और बंधुआ मजदूर की ओर अग्रसर करेगा

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केंद्रीय कृषि अध्यादेश-2020 क्या किसानों को गुलामी और बंधुआ मजदूर की ओर अग्रसर करेगा आधिकारिक बयान के अनुसार , "कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सुविधा) अध्‍यादेश 2020 को अधिसूचित किया गया है. इसके तहत किसान अपनी पसंद के बाजार में उपज बेच पाएंगे. ... जिससे कृषि व्यवसाय से जुड़ी कंपनियां, प्रोसेसर, थोक व्यापारी और निर्यातकों और किसानों के बीच पहले से तय कीमतों पर समझौते की छूट होगी.                  सरकारी परिभाषा आपको अच्छी लगी होगी लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं, मानो यह अध्यादेश किसानों के लिए ख्याली पकवान के समान है हम और आप सायद उस स्थिति से नही समझ पाएंगे क्योंकि ना हम किसान है ना सायद आप, जिसका हक छीना जाता उसे इस दर्द का भलि भाँति अनुभव होता है और इतिहास गवाह है की किसानो के लिए हमेशा अपनी सुविधा अनुसार नियम कानून बनाए चाहे वो खाद बीज़ लेनी की प्रक्रिया हो या ऋण लेने की किसान हमेशा ही हताश हुआ है किसान महासंघ ने कहा ~ कि इन अध्यादेशों के जरिये आने वाले समय में केंद्र सरकार किसानों ...

सुशांत , रिया और कंगना के मुद्दो के सामने फीके पड़े, बढ़ती बीमारी, बेरोजगारी और बदहाली जैसे मुद्दे..!

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सुशांत , रिया और कंगना के मुद्दो के सामने फीके पड़े, बढ़ती बीमारी, बेरोजगारी और बदहाली जैसे मुद्दे..!  पहले ,   सुशांत और रिया फिर कंगना.. वास्तव में सिनेमा ने देश का बेड़ा गर्त कर रखा है.. इसके आगे बढ़ती बीमारी, बेरोजगारी और बदहाली सब फीकी है..             बीते महीने सुशांत की मौत भारतीय मीडिया को नया काम काज दे गई और सत्ता में स्थापित राजनीतिक पार्टियां अर्थार्त् सरकारे जमीनी हकीकत के मुद्दों से बच गई जैसे हमेशा से बचती आई है भले ही सरकारें और प्रशासन सुशांत को न्याय ना दिला पाई लेकिन सुशांत मीडिया को रोजगार और सरकार को उनकी नाकामी से बचा गए, लेकिन थी तो नाकामी ही कितने दिन छिपती..!   मानो सुशांत कोई मर्डर केस ना होकर एक राजनीति कार्ड हो जिसका उपयोग राज्य की सरकार तो कर ही रहीं है साथ में केंद्र भी इसका उपयोग करने से ना चूक रही है, जब आप न्यूज चैनल खोलकर बैठते हैं तो आपको जहां तक है यही महसूस होगा कि भारत में पहली बार मर्डर हुआ हो, या यह केस बड़ा ही पेचीदां हो धीरे-धीरे रिया भी इस केस में भागीदार हो गई, मर्डर किसन...